0512 जिद्दू कृष्णमूर्ति
आज 0512 जिद्दू कृष्णमूर्ति का जन्मदिन है. मैंने उनका नाम पहली बार Illustrated Weekly में पढ़ा था और पढ़ कर हैरान था कि श्रीमती इंदिरा गांधी किसी व्यक्ति को इतना सम्मान व आदर दे सकती हैं.
उनके विचारों से मैं अवगत हूँ लेकिन उन्हें पूरी तरह से अभी तक समझ नहीं पाया हूँ. कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं.
"गंगा बस उतनी नहीं है, जो ऊपर-ऊपर हमें नज़र आती है। गंगा तो पूरी की पूरी नदी है, शुरू से आखिर तक, जहां से उद्गम होता है, उस जगह से वहां तक, जहां यह सागर से एक हो जाती है। सिर्फ सतह पर जो पानी दीख रहा है, वही गंगा है, यह सोचना तो नासमझी होगी। ठीक इसी तरह से हमारे होने में भी कई चीजें शामिल हैं, और हमारी ईजादें सूझें हमारे अंदाजे विश्वास, पूजा-पाठ, मंत्र-ये सब के सब तो सतह पर ही हैं। इनकी हमें जाँच-परख करनी होगी, और तब इनसे मुक्त हो जाना होगा-इन सबसे, सिर्फ उन एक या दो विचारों, एक या दो विधि-विधानों से ही नहीं, जिन्हें हम पसंद नहीं करते।"[2]
‘हम रूढ़ियों के दास हैं। भले ही हम खुद को आधुनिक समझ बैठें, मान लें कि बहुत स्वतंत्र हो गये हैं, परंतु गहरे में देखें तो हैं हम रूढ़िवादी ही। इसमें कोई संशय नहीं है क्योंकि छवि-रचना के खेल को आपने स्वीकार किया है और परस्पर संबंधों को इन्हीं के आधार पर स्थापित करते हैं। यह बात उतनी ही पुरातन है जितनी कि ये पहाड़ियां। यह हमारी एक रीति बन गई है। हम इसे अपनाते हैं, इसी में जीते हैं, और इसी से एक दूसरे को यातनाएं देते हैं। तो क्या इस रीति को रोका जा सकता है?[2]
“शिक्षा का उद्देश्य है सही रिश्तों की स्थापना, केवल दो व्यक्तियों के बीच ही नहीं बल्कि व्यक्ति और समाज के बीच में भी, और इसीलिए आवश्यक है कि शिक्षा सबसे पहले अपनी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया को समझने में व्यक्ति की सहायक हो।”
आज 0512 जिद्दू कृष्णमूर्ति का जन्मदिन है. मैंने उनका नाम पहली बार Illustrated Weekly में पढ़ा था और पढ़ कर हैरान था कि श्रीमती इंदिरा गांधी किसी व्यक्ति को इतना सम्मान व आदर दे सकती हैं.
उनके विचारों से मैं अवगत हूँ लेकिन उन्हें पूरी तरह से अभी तक समझ नहीं पाया हूँ. कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं.
"गंगा बस उतनी नहीं है, जो ऊपर-ऊपर हमें नज़र आती है। गंगा तो पूरी की पूरी नदी है, शुरू से आखिर तक, जहां से उद्गम होता है, उस जगह से वहां तक, जहां यह सागर से एक हो जाती है। सिर्फ सतह पर जो पानी दीख रहा है, वही गंगा है, यह सोचना तो नासमझी होगी। ठीक इसी तरह से हमारे होने में भी कई चीजें शामिल हैं, और हमारी ईजादें सूझें हमारे अंदाजे विश्वास, पूजा-पाठ, मंत्र-ये सब के सब तो सतह पर ही हैं। इनकी हमें जाँच-परख करनी होगी, और तब इनसे मुक्त हो जाना होगा-इन सबसे, सिर्फ उन एक या दो विचारों, एक या दो विधि-विधानों से ही नहीं, जिन्हें हम पसंद नहीं करते।"[2]
‘हम रूढ़ियों के दास हैं। भले ही हम खुद को आधुनिक समझ बैठें, मान लें कि बहुत स्वतंत्र हो गये हैं, परंतु गहरे में देखें तो हैं हम रूढ़िवादी ही। इसमें कोई संशय नहीं है क्योंकि छवि-रचना के खेल को आपने स्वीकार किया है और परस्पर संबंधों को इन्हीं के आधार पर स्थापित करते हैं। यह बात उतनी ही पुरातन है जितनी कि ये पहाड़ियां। यह हमारी एक रीति बन गई है। हम इसे अपनाते हैं, इसी में जीते हैं, और इसी से एक दूसरे को यातनाएं देते हैं। तो क्या इस रीति को रोका जा सकता है?[2]
“शिक्षा का उद्देश्य है सही रिश्तों की स्थापना, केवल दो व्यक्तियों के बीच ही नहीं बल्कि व्यक्ति और समाज के बीच में भी, और इसीलिए आवश्यक है कि शिक्षा सबसे पहले अपनी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया को समझने में व्यक्ति की सहायक हो।”
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